BA Semester-5 Paper-1 Sociology - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2797
आईएसबीएन :0

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समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)

प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।

उत्तर -

सोलहवीं शताब्दी से समाजशास्त्र के विकास की चतुर्थ अवस्था प्रारम्भ होती है। इस अवस्था का प्रारम्भ अगस्ट कॉम्ट.. (1798-1897) के समय से माना जाता है। यही समाजशास्त्र के वैज्ञानिक विकास की वास्तविक अवस्था है। अगस्ट कॉम्ट के गुरु सेण्ट साइमन समाज को भौतिक विज्ञानों के समान एक ऐसा

विज्ञान बनाना चाहते थे जिसमें सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अध्ययन तथा विश्लेषण किया जा सके और सामाजिक नियमों की खोज की जा सके। अगस्ट कॉम्ट ने अपने गुरु के इन्हीं विचारों को मूर्त रूप प्रदान करने का भरसक प्रयत्न किया। इन्होंने समाज से सम्बन्धित अध्ययन को 'सामाजिक भौतिकी' के नाम से सम्बोधित किया। सन् 1938 में इन्होंने इस नाम को बदलकर 'समाजशास्त्र' कर दिया। इसीलिए इनको समाजशास्त्र का जनक कहा जाता है।

अगस्ट कॉम्ट के चिन्तन का परिणाम समाजशास्त्र है। समाजशास्त्रीय प्रणाली का विकास भी इन्होंने ही किया। इन्होंने स्पष्ट रूप से बताया है कि प्राकृतिक घटनाओं की भाँति सामाजिक घटनाओं का अध्ययन भी प्रत्यक्ष विधि से किया जा सकता है। सन् 1849 में जॉन स्टुअर्ट मिल ने इंग्लैंड को समाजशास्त्र शब्द का ज्ञान कराया। इसके बाद हरबर्ट स्पेन्सर ने भी समाजशास्त्र के विकास में सराहनीय योगदान दिया। इन्होंने अपनी प्रसिद्ध कृति 'सिन्थेटिक फिलॉसफी में अगस्ट कॉम्ट के विचारों को मूर्त रूप देने का पूरा प्रयास किया। इसके अतिरिक्त इन्होंने अपने प्रसिद्ध सिद्धान्त 'सावयवी सिद्धान्त' में समाज की तुलना मानव शरीर से की है। समाजशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन का कार्य सर्वप्रथम अमरीका के मेल विश्वविद्यालय में आरम्भ हुआ।

समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों से पृथक एक स्वतन्त्र एवं वैषयिक विज्ञान बनाने का श्रेय फ्रांसीसी विद्वान इमाइल दुर्खीम (1858-1917) को जाता है। इन्होंने समाजशास्त्र को सामूहिक प्रतिनिधानों का विज्ञान माना है। एडवुड का कहना है कि फ्रांस में समाजशास्त्र की नींव डालने का श्रेय तो कॉम्ट को जाता है किन्तु लेकिन इसे वैषयिक विज्ञान बनाने का श्रेय दुर्खीम को ही जाता है। इन्होंने समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे - मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र और इतिहास से स्वतंत्र किया। प्रसिद्ध जर्मन समाजशास्त्री मैक्सवेंबर ने भी समाजशास्त्र को वैज्ञानिक रूप देने का पूरा प्रयत्न किया। इसके अतिरिक्त पैरेटो ने समाजशास्त्र को विज्ञान के रूप के विकास में काफी योगदान दिया।

इस प्रकार विभिन्न देश के विद्वानों ने समाजशास्त्र के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। जर्मनी, फ्रांस एवं अमेरिका में इसका काफी विकास हुआ। इंग्लैंड के इसके विकास गति मन्द रही। यद्यपि अमेरिका में इसके विकास पर विशेष ध्यान दिया गया किन्तु 19वीं शताब्दी के अन्त तक वहाँ इसके विकास की गति तीव्र नहीं हो पायी।

समाजशास्त्र के वैज्ञानिक विकास में मित्र, मानहीन, चार्ल्स बूथ, हॉब्स हाउस, स्पेन्सर व गिन्सबर्ग आदि का सराहनीय योगदान रहा है। इन सभी ने इंग्लैंड में समाजशास्त्र के विकास की दृष्टि से सराहनीय कार्य किया। वहाँ पर 1907 में समाजशास्त्र के अध्यापन का कार्य आरम्भ हुआ। फ्रांस में दुर्खीम, लीप्ले व टार्डे, आदि समाजशास्त्र की दृष्टि से सराहनीय कार्य किया। वहाँ पर सन् 1889 में इसके अध्ययन- अध्यापन का कार्य प्रारम्भ हुआ। जर्मनी में 19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में इसके विकास में कार्ल मॉर्क्स, मैक्सवेबर, वीरकान्त, सिमैल, टॉनीज व वानविज आदि विद्वानों ने सराहनीय योगदान दिया। अमेरिका में इसका विकास काफी तीव्र गति से विकास हुआ। वहाँ पर इसके विकास में समनर, बोर्स, जिमरमैन, रॉस, क्राजर, पारसन्स व आगबर्न आदि ने सराहनीय योगदान दिया। वहाँ के मेल विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम 1876 में इसके अध्ययन व अध्यापन का कार्य आरम्भ हुआ। सन् 1924 में मिस्र में और सन् 1947 में स्वीडन में समाजशास्त्र के विभागों की स्थापना की गयी। वर्तमान समय में सामान्यतः लगभग सभी देशों में (कुछ देशों के अपवाद के रूप में छोड़कर) समाजशास्त्र के वैज्ञानिक विकास का कार्य आरम्भ हो चुका है। इसके वैज्ञानिक विकास के कारण ही इसकी उपयोगिता में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है।

पन्द्रहवी शताब्दी में वैज्ञानिक विधि का श्रीगणेश हुआ और प्राकृतिक विज्ञान का क्षेत्र दर्शन से अलग कर दिया गया। धीरे-धीरे राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक इत्यादि विषयों का अध्ययन अलग-अलग किया जाने लगा, जिसके फलस्वरूप अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र आदि विशिष्ट सामाजिक तथा सामाजिक जीवन के बारे में अनेक विचारों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया, जिनमें सर्वश्री मास्कर्स अरेलियस, सेण्ट अगस्टाइन, थामस हाब्स (1588-1679), जान लॉक (1632-1704), रूसो (1712-1778), मान्टेस्क्यू (1689-1755), आदि विद्वानों ने विशेष सहयोग प्रदान किया। वास्तव में समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग अगस्ट काम्ट (1798-1857) द्वारा 1838 में किया गया। इस शास्त्र को आगे चलकर जॉन स्टुअर्ट मिल ने 1838 में इग्लैण्ड में परिचित कराया। श्री हरबर्ट, स्पेन्सर ने इसी स्तर पर समाजशास्त्र का पालन- पोषण किया। काम्ट महोदय ने समाजशास्त्र की सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान कह कर परिभाषित किया। उनके अनुसार समाज एक व्यवस्था है और उस व्यवस्था के सभी भाग एक-दूसरे पर आधारित और एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं इसलिये समाज का अध्ययन सम्पूर्ण रूप में होना चाहिये। वास्तव में समाजशास्त्र के आधुनिक विकास में संसार के विभिन्न विद्वानों के आधार पर अगस्ट कॉम्ट महोदय ने विज्ञान के इतिहास का सर्वेक्षण किया और एक संस्तरण प्रस्तुत किया (गणित, खगोलशास्त्र, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, प्राणिशास्त्र, समाजशास्त्र)। काम्टे का विश्वास था कि समाजशास्त्रीय अध्ययन द्वारा प्राप्त प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर ही मनुष्य के लिये अपनी जटिल समस्याओं पर नियन्त्रण पाना सम्भव होगा।

समाजशास्त्र को और अधिक वस्तुनिष्ठ बनाने के लिये ब्रिटिश समाजशास्त्रीय सिद्धान्त को एक नया मोड़ प्रदान किया और उद्विकास का नियम डार्विन द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर प्रस्तुत किया। स्पेन्सर महोदय की सर्वाधिक ख्याति उनके द्वारा प्रतिपादित "समाज की जीव सावयवी" अवधारणा के कारण हुई। अमेरिकन सिद्धान्तकार राबर्ट के मर्टन और रोजनबर्ग व कासर का विचार जो आगे चलकर संरचनात्मक प्रकार्यवाद के रूप में प्रस्फुटित हुआ उसके मूल में हरबर्ट स्पेन्सर महोदय का योगदान है। 19वीं शताब्दी के मध्य तक समाजशास्त्र का विस्तार अमेरिका में हो चुका था जिसके प्रेणता लेस्टरवार्ड महोदय है। (1841-1913) जिन्होंने अपनी पुस्तक 1939 में "लेस्टर एफवार्ड दि अमेरिकन एरिस्टोटल" में स्पेन्सर महोदय के विचारों को कुछ हद तक स्वीकार किया और संरचनात्मक संशलेषण के सिद्धान्त को सर्वव्यापी माना।

श्री विलियम जी समनर (1840-1910) महोदय ने अपनी प्रख्यात कृति 'folkways' में प्रस्तुत रूढ़ियों का सिद्धान्त प्रदान करने का श्रेय मैबरिथल टार्ड (1883 से 1904) को है। जिन्होंने अनुकरण को सामाजिक जीवन के नियम के रूप में प्रस्तुत किया। अपनी प्रख्यात पुस्तक "Low os Imitation" में अनुकरण के सिद्धान्त या नियम को विस्तार से समझाया है। फ्रांस में श्री काम्ट के 'उत्तराधिकारी के रूप में समाजशास्त्रीय सिद्धान्त के क्षेत्र में जिनका अनुपम योगदान रहा वे श्री इमाइल दुर्खीम थे। अपनी प्रख्यात कृतियों 'De Le Division du Travail social, (The Division of Labour in Social), Le suicide (Suicide) Les formes elementarics de la vie religiouse (The Elemartary formsot Religious life) में श्री दुर्खीम ने क्रमशः श्रम-विभाजन के सिद्धान्त, आत्महत्या के सामाजिक सिद्धान्त तथा धर्म के सामाजिक सिद्धान्त को विकसित किया है। श्रम विभाजन के सिद्धान्त में श्री दुर्खीम ने यह दर्शाने का प्रयास किया है कि श्रम विभाजन का प्रत्यक्ष सम्पर्क जनसंख्या के घनत्व से है एवं हर दशा में श्रम विभाजन के कुछ सामाजिक परिणाम हैं जिनमें सबसे प्रमुख समाज में यांत्रिक एकता के स्थान पर सावर्जनिक एकता या संगठन का पनपना है। आत्महत्या के सिद्धान्त में समाज (चाहे वह परिवारिक समाज हो या धार्मिक समाज या राजनीतिक समाज) को आत्महत्या का कारण माना गया है। उसी प्रकार अपने धर्म के सिद्धान्त में श्री दुर्खीम का अन्तिम निष्कर्ष यह है कि 'समाज ही वास्तविक देवता है' एवं 'स्वर्ग का साम्राज्य एक महिमान्वित समाज ही है'। इस प्रकार श्री दुर्खीम ने अपने सभी सिद्धान्तों में समाज़ या समूह के महत्व को दर्शाने का प्रयास किया है।

सर्वश्री स्पेन्सर समनर आदि के बाद समाजशास्त्रीय सिद्धान्त के क्षेत्र में संघर्ष के सिद्धान्त को अत्यधिक बल देने वाले विचारकों में श्री कार्लमार्क्स का नाम उल्लेखनीय है। उनके द्वारा प्रस्तुत द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त तथा वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त इस सन्दर्भ में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। श्री मार्क्स के अनुसार समाज दो महान वर्ग शोष और शोषित में विभाजित रहता है और इनके बीच संघर्ष के फलस्वरूप ही एक नये युग का उदय होता है। उसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय निर्णायकवादी सिद्धान्तों में श्री कार्ल मार्क्स का सिद्धान्त एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
  5. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
  6. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
  7. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
  8. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
  9. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
  10. प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  11. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  12. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
  14. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
  15. प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
  18. प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
  19. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
  20. प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
  24. प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
  25. प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
  26. प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
  27. प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  28. प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
  30. प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
  31. प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
  32. प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
  33. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
  35. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
  36. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
  41. प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
  43. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
  44. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
  45. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  49. प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
  54. प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
  55. प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
  56. प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  58. प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  59. प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
  60. प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
  63. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
  69. प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  71. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  72. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  79. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
  80. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
  81. प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
  82. प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
  83. प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  84. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
  86. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  88. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  89. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  90. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  91. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  92. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
  95. प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
  96. प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
  97. प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  100. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
  103. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  104. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  105. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  106. प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
  107. प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  112. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  113. प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
  114. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
  115. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  117. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  123. प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
  126. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  127. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  128. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  130. प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
  131. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
  133. प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
  134. प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
  136. प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
  137. प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
  138. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  139. प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
  140. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  142. प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
  143. प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
  144. प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  145. प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
  146. प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  147. प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
  148. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  149. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
  150. प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
  151. प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
  152. प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
  153. प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
  154. प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
  155. प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
  156. प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
  157. प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
  158. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  159. प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
  160. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  161. प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
  162. प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  163. प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  164. प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
  165. प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
  166. प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।

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